एक एहसास सा था, उसके आने का
सुबह उसको देखा था, प्लेटफ़ॉर्म पर खड़े हुए
लगा की वोह चड़ी होगी
ट्रेन में बैठा, बार- बार खिड़की से झांकता
की शायद वोह आ जाये,
पर अचानक एक झटका सा लगा
सिग्नल हो गया था, ट्रेन पटरी पर तैरने लगी
होती शाम के साथ
उसके आने की उम्मीद, भी डूब चुकी थी
ट्रेन की बदती रफ़्तार के साथ
मन में भी कई विचार भाग रहे थे
की पता नहीं, वोह चड़ी भी होगी या नहीं
पर अचानक, एक शोर के साथ ध्यान टूटा
ट्रेन रुकी हुई थी, और लोग कह रहे थे
इलाहाबाद आ गया
वोह कहीं नहीं थी.......
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1 comment:
AAPKI YE KVITA BAHOT HI JYADA ACHCHI LIKHI HAI....YA IS KAVITA KO SIRF ACHCHI KAH KAR SAMBODHIT KARNA THI NAHI HOGA
BAS YAHI KAHNA CHAHUGI KI AAPKA JAWAB NAHI....MUJHE BAHOT ACHCHA LAGA AAPKE BLOG ME AA KAR.....
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