tag:blogger.com,1999:blog-1143156860068759608.post929857403196823931..comments2023-10-06T18:57:20.900+05:30Comments on चाय बैठकी...: देश में लोकतंत्र की सबसे मजबूत पाठशाला है इलाहाबाद विश्वविद्यालयSwaruphttp://www.blogger.com/profile/09707755333516226269noreply@blogger.comBlogger4125tag:blogger.com,1999:blog-1143156860068759608.post-34512028008991174362008-04-10T08:32:00.000+05:302008-04-10T08:32:00.000+05:30@विनीत कुमारअगली बार कुछ और अपडेट के साथ आऊंगा।@अभ...@विनीत कुमार<BR/>अगली बार कुछ और अपडेट के साथ आऊंगा।<BR/>@अभिषेक ओझा<BR/>हासिल आखिर थी तो, फिल्म ही। लेकिन, ये भी सही है कि लोकतंत्र में भी भारतीय लोकतंत्र जैसी कुछ विसंगतियां आईं थीं। बुढ़ाते नेताओं के साथ नकारा लड़कों की एक फौज भी विश्वविद्यालय में बच रह जाती थी। जो, बदमाश-लफंगई के सिवा क्या करती। <BR/>@संदीप सिंह<BR/>आपने बहुत सही बात ध्यान में दिलाई। मैं, फिर से इस लेख में ही मशाल जुलूस वाली कुछेक लाइनें जोड़ रहा हूं।Batangadhttps://www.blogger.com/profile/08704724609304463345noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1143156860068759608.post-22832002722046518532008-04-09T20:51:00.000+05:302008-04-09T20:51:00.000+05:30बहुत-बहुत बधाई। अनिल रघुराज जी के बाद आपने भी इस प...बहुत-बहुत बधाई। अनिल रघुराज जी के बाद आपने भी इस पाठशाला में नया अध्याय जो जोड़ा। पूरे चौदह साल इस अवधूत शहर की रेत फांकी लेकिन स्मृतियों में अब-तक बिलकुल तरो-ताज़ा है बेहद सुनहरी झांकी। मृगमारीचिका (प्रशासनिक नौकरी)<BR/>के लोभ में कुछ अनैतिक कृत्यों से भी जुड़ गया(चाहे अनचाहे)जिनका जिक्र आपने लेख में कई बार किया है....यानी चौदह साल एक ही छात्रावास पीसीबी (सर प्रमदा चरण बनर्जी)में बीते, कैसे ये तो आपको बखूब पता है। हां चुनाव की झलकियों में एक मनुहारी छवि लेख में छूट गई वो है मसाल जलूस की निराली परंपरा। आखिरी भाषण खत्म होने के बाद रहा-सहा निष्कर्ष भी इस जुलूस के निकलते ही मिट जाता था। या कहें कमोवेस चुनाव परिणाम नज़र आ जाता था।Sandeep Singhhttps://www.blogger.com/profile/17906848453225471578noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1143156860068759608.post-64876876963678689572008-04-09T12:58:00.000+05:302008-04-09T12:58:00.000+05:30इलाहबाद विश्वविद्यालय के सुनहरे इतिहास के बारे में...इलाहबाद विश्वविद्यालय के सुनहरे इतिहास के बारे में मैंने बहुत कुछ सुना और थोड़ाबहुत पढ़ा भी है, पर आजकल भी क्या सबकुछ वैसा ही है? इधर सुनने में तो कुछ और ही आता है, और हासिल जैसी फिल्मों की पृष्ठभूमि भी इसी विश्वविद्यालय में तैयार होती है.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-1143156860068759608.post-82655719751325931812008-04-09T10:02:00.000+05:302008-04-09T10:02:00.000+05:30इलाहाबाद कभी गया नहीं लेकिन साहित्यकारों की जुबान ...इलाहाबाद कभी गया नहीं लेकिन साहित्यकारों की जुबान से इतना कुछ सुन चुका हूं कि अभ्यस्त हो गया हूं इसकी बड़ाई के पुल बांधने के लिए। लोकतंत्र की बात तो है ही लेकिन थोड़ा और अपडेट हो जाए तो मजा आ जाए।विनीत कुमारhttps://www.blogger.com/profile/09398848720758429099noreply@blogger.com