Thursday, April 29, 2010

बूढ़ा घर.....



गर्मी की तपन से निजात दिलाते थे ये मकान,
तर हो जाता था कलेजा......
लेकिन समय के साथ लोग बदलते गये
छोड़ते गये अपने गांव को
भूलते गये गीली मिट्टी की खुशबू
शहर में फ्लैट के अंदर कैद हो गये वो लोग
जिनके गांवों के घरों कच्ची मिट्टी वाले आंगन थे
और आंगन के बीच तुलसी की बिरवा
सब बदल गया , ढह गया मिट्टी का वो मकान
किसी जिम्मेदार बुजुर्ग की तरह.
गांव गया था , कुछ ऐसे ही मकान गिरे मिले
और कुछ पक्की ईंटो में कैद।
गांव से मैं भी शहरवाला बन गया था
हाथ में डिजिटल कैमरा था और
कैद कर ली ये तस्वीर।

Saturday, April 24, 2010

रेत वाला जंगल



ये तस्वीर मुंबई के पास एक बीच से उतारी है

Saturday, April 17, 2010

खुजलीबाज और उंगलीबाज



खुजलीबाज और उंगलीबाज
कई दिनों से कुछ लिखने की फिराक में हूं,लेकिन मेरी लिखने की अभिलाषाओं पर दो तरह के लोग मिलकर ऐसा तुषारापात करते हैं कि भावनाओं की फसल का अंकुर कागज़ पर उतरने के पहले ही मटियामेट हो जाता है...ये दोनो सुकून और शांति के दुश्मन हैं... दोनों की नज़र हमेशा ऐसे महानुभावों पर रहती है जो जिंदगी की भागमभाग से अलग होकर कुछ पल चैन से रहना चाहते हैं...इनमें से एक का नाम है खुजलीबाज...। खुजलीबाज एक ऐसा प्राणी है जो हर दफ्तर कार्यालय में पाया जाता है..इतना ही नहीं, राह चलते सड़क पर, स्टेशन पर , या फिर पिक्चर हॉल में भी ऐसे प्राणियों की प्रजाति बड़ी आसानी से मिल जाती है...। खुजलीबाज जब कभी भी फ्री होता है, न जाने क्यों प्राकृतिक रुप से उसकी तशरीफ में खुजली होने लगती है...खुजली भी ऐसी जिसका कोई जोड़ नहीं, कोई तोड़ नहीं..इनकी खुजलाहट के आगे बीटेक्स, और इचगार्ड जैसी दवाइयों को भी पसीना आ जाता है...इस खुजलाहट को वो अपने परम मित्र, बड़े विचित्र माननीय उंगलीबाज से शेयर करता है, उंगलीबाज की पहचान उसकी उंगली है,उसकी उंगली में सलमान के “दस के दम” से कहीं ज़्यादा दम होता है...इन दोनो ने मिलकर इतना चरस किया है कि मेरे साथ साथ पूरा देश त्राहिमाम कर रहा है...इन दोनों के सामने कोई इंसान अपने मन मुताबिक काम नहीं कर सकता...उसके खुद के काम में अड़ंगा लगाकर ये ऐसा कार्यभार दिलाते हैं मानों देश की धरती से सारा सोना एक ही दिन में निकलवा लेंगे..।
सिर्फ देश ही नहीं विदेश की राजनीति में भी इन दोनो का अच्छा खासा दखल है...और इन दोनों ने अपने अपने गुरु भी बना रखे हैं..जितने भी खुजलीबाज हैं उनके गुरु आदरणीय शशी थरुर जी हैं,जिनकी खुजली ने देश के सारे राजनीतिज्ञों की खाज में चार चांद लगा रखा है...वहीं उंगलीबाजों को मैदान में डटे रहने की हिदायत उंगलीमास्टर अमरसिंह से मिलती है...दुनिया के समस्त उंगलीबाज इन्हें पिता तुल्य मानते हैं...अपनी उंगली की ताकत ये समय समय पर दिखाते रहते हैं...।
खैर...कई दिनों की मशक्कत के बाद आखिरकार मैं कुछ लिखने में सफल हो गया,हालांकि आज भी ये खुजलीबाज और उंगलीबाज राह में रोड़े अटका रहे थे लेकिन इन दोनों के प्रकोप से अंतत: मैं बच गया....।
भले ही मैं बच गया लेकिन आप लोगों को हिदायत दे रहा हूं ज़रा बच के रहना इन दोंनों से...।

Sunday, April 11, 2010

ये जहाँ है कहाँ !


क्या सच में- कभी कैथवास जी की फोटोग्राफ में गरीब लड़की को देखती बच्ची की आँखों में झलकती मासूमियत बरक़रार रह पाएगी, क्या सच में कभी गरीब-अमीर की दूरी कम हो पाएगी ,क्या सच में कभी गरीब आदिवासियों को उनकी जमीन वापस मिल पाएगी और वो नक्सल नही एक आम भारतीय कहलायेंगे , क्या सच में कभी कोई ऐसी पिच बन पाएगी जिसकी लम्बाई ११ गज हिंद में तो ११ गज पाक में होगी , क्या सच में कभी सफेदपोशों की सफेदी सूरज की रौशनी में तो नकाबपोशों की कालिख अमावस्या की कालिमा में गुम हो पाएगी, क्या सच में कभी लालफीताशाही मिट जाएगी, क्या सच में कभी हर बेरोजगार के हाथ में मेहनत की कमाई आ पाएगी, क्या सच में कभी चोरी हत्या बलात्कार जैसी घटनाएँ रुक जायेगी.
क्या सच में कभी कोई ऐसी दुनिया बस पाएगी???????????
शायद बस पाएगी............................ तभी तो ये परिंदा हमसे कह रहा है ...................